स्पॉट मार्केट आखिर क्या है?
एक वाक्य: बस आप अभी पैसे निकालें, अभी माल लें, कीमत तुरंत तय हो जाए, कोई किसी का कर्जदार न बने बाजार!
आप पहली बार सिक्का खरीदते हैं तो संभावना है कि आप स्पॉट ट्रेडिंग कर रहे हैं।
बिनेंस, OKX खोलें, BTC अभी 6.9 लाख डॉलर है, आप सीधे "खरीदें" पर क्लिक करें, वॉलेट में तुरंत बिटकॉइन का ढेर लग जाएगा, यही स्पॉट ट्रेडिंग है। कोई लीवरेज नहीं, कोई एक्सपायरी डेट नहीं, कोई लिक्विडेशन की चिंता नहीं, खरीद लिया तो आपका है, दस साल होल्ड करना चाहें तो कर लें।
स्पॉट मार्केट वास्तव में हर जगह है
अमेरिकी शेयर, ए शेयर स्पॉट हैं, सोना चांदी स्पॉट हैं, फॉरेक्स में आप डॉलर बदलते हैं तो भी स्पॉट। नास्डैक, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज, शंघाई स्टॉक एक्सचेंज, सब स्पॉट मार्केट हैं। क्रिप्टो सर्कल में भी यही है, 99% नए लोग पहला एक्सीलरेटर स्पॉट पर ही दबाते हैं।
तो स्पॉट ट्रेडिंग कैसे खेलें?
दो रास्ते:
1. एक्सचेंज में खेलें (अधिकांश लोग यह चुनते हैं)
ऐप खोलें, प्राइस चार्ट देखें, सीधे मार्केट ऑर्डर से सेकंड में एंटर करें, या लिमिट ऑर्डर लगाकर दूसरों के स्मैश करने का इंतजार करें। सिक्का खरीद लिया तो सीधे आपके वॉलेट या एक्सचेंज अकाउंट में, बेचते समय भी वही, पैसे तुरंत आ जाते हैं।
2. ऑफ-एक्सचेंज ट्रेडिंग OTC (बड़े लोग सबसे ज्यादा पसंद करते हैं)
वीचैट ग्रुप, टेलीग्राम में प्राइवेट चैट, कीमत तय करें, सीधे USDT ट्रांसफर करके सिक्का बदलें, या ऑफलाइन कैश ट्रेडिंग। कोई डेप्थ नहीं, कोई स्लिपेज नहीं, एक हथौड़े का सौदा, अरबों डॉलर का ऑर्डर भी चुपचाप निगल सकता है।
एक्सचेंज दो प्रकार के होते हैं
- सेंट्रलाइज्ड एक्सचेंज (CEX): बिनेंस, OKX, बिनेंस जैसे, बॉस आपके सिक्के संभालते हैं, KYC के लिए आईडी चाहिए, स्लिपेज कम, स्पीड तेज, फीस कम, लेकिन प्लेटफॉर्म पर भरोसा करना पड़ता है कि भाग न जाए।
- डिसेंट्रलाइज्ड एक्सचेंज (DEX): यूनिस्वैप, पैनकेकस्वैप जैसे, वॉलेट खुद कनेक्ट करें, स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट ऑटोमैटिक एक्सचेंज, कोई नहीं जानता आप कौन हैं, प्राइवेसी फुल, लेकिन फीस थोड़ी महंगी, फ्रंटएंड कभी-कभी खराब हो जाता है।
स्पॉट प्राइस कैसे आता है?
शुद्ध सप्लाई-डिमांड से तय होता है। कोई 6.9 लाख पर बेचने का ऑर्डर लगाता है, कोई 6.89 लाख पर खरीदने का, ऑर्डर मैच होते ही प्राइस जंप कर जाता है। कोई रहस्यमयी एल्गोरिदम नहीं, बस लोग एक-दूसरे को कीमत चिल्लाते हैं।
फ्यूचर्स से क्या फर्क है?
- स्पॉट: आज पैसे आज माल, आज ही सेटलमेंट।
- फ्यूचर्स: आज कॉन्ट्रैक्ट साइन करें, तीन महीने बाद पैसे और माल दें, बीच में 100 गुना लीवरेज से उड़ान भर सकते हैं।
मार्जिन ट्रेडिंग से क्या फर्क है?
- स्पॉट: एक हाथ पैसे एक हाथ सिक्का, 100 रुपये से ज्यादातम 100 रुपये का माल खरीद सकते हैं।
- मार्जिन: उधार लेकर खेलें, 100 रुपये से 10,000 रुपये का काम चला सकते हैं, कमाई ज्यादा नुकसान भी ज्यादा, खेल न पाए तो सीधे जीरो।
स्पॉट के फायदे
- प्राइस क्लीन, जितना दिखे उतना ही, कोई पीछे से चालाकी नहीं।
- रूल्स सिंपल, नए लोग तीन मिनट में सीख लें, पुराने लोग आराम से होल्ड कर सकें।
- खरीद लिया तो सो सकें, आधी रात लिक्विडेशन का डर नहीं।
- सिक्का सच में मिल गया, कहीं भी ट्रांसफर करने को तैयार, स्वामित्व आपके हाथ में।
स्पॉट के नुकसान
- कमाई धीमी, कोई लीवरेज नहीं, दस-हundred गुना के लिए बुल मार्केट का इंतजार।
- बड़े सामान स्पॉट में शायद घर लाना पड़े (पेट्रोल खरीदें तो ऑयल टैंकर की व्यवस्था), क्रिप्टो ठीक है, बस प्राइवेट की खुद संभालनी पड़ती है।
- बड़े ऑर्डर एक्सचेंज में स्लिपेज हो सकता है, अच्छी कीमत न मिले, तो OTC जाना पड़ता है।
एक वाक्य में सारांश
स्पॉट सबसे मूल, सबसे शुद्ध खरीद-फरोख्त है:
मैं आपके माल को पसंद करता हूं, मैं अभी पैसे दूंगा, आप अभी मुझे दें, बूढ़े-बच्चे बिना धोखे।
नए लोग क्रिप्टो में पहला स्टेशन हमेशा स्पॉट होता है, समझ आए तो लीवरेज, कॉन्ट्रैक्ट जैसे हाई लेवल गेम्स सोचें।
सरल तरीके से कमाई चाहते हैं, आराम से सोना चाहते हैं?
तो ईमानदारी से स्पॉट करें, बाकी समय को सौंप दें।