नए क्रिप्टो ट्रेडर्स अक्सर "खरीद नहीं पाते, बेच नहीं पाते" या "बेचते ही गिर जाता है, खरीदते ही चढ़ जाता है" जैसे गड्ढों में फंस जाते हैं? वास्तव में समस्या की जड़ "लिक्विडिटी" में है—यह क्रिप्टो ट्रेडिंग की "सुचारू यातायात" है, जो सीधे तय करती है कि आप जल्दी ट्रांजैक्शन कर पाएंगे या नहीं, कोई अतिरिक्त नुकसान होगा या नहीं, और यह पूरे ट्रेडिंग प्रोसेस में व्याप्त है। नीचे सरल भाषा में कोर लॉजिक, वास्तविक प्रभाव और चयन तकनीकों को तोड़कर समझाते हैं, पूरी तरह से बिना झूठे दावों के, केवल वास्तविक लॉजिक।

एक, पहले समझें: लिक्विडिटी आखिर क्या है?

क्रिप्टो में लिक्विडिटी, मूल रूप से मार्केट की "ट्रेडिंग क्षमता" है, जिसे अक्सर "ट्रेडिंग डेप्थ" भी कहा जाता है।

सरल शब्दों में, "खरीदना चाहें तो तुरंत खरीद सकें, बेचना चाहें तो तुरंत बेच सकें, और कीमत एक ऑर्डर से बिगड़े नहीं": उच्च लिक्विडिटी वाले मार्केट में, भले ही कोई बड़ा बाय-सेल ऑर्डर हो, कॉइन की कीमत स्थिर रहती है; निम्न लिक्विडिटी वाले मार्केट में, एक मध्यम आकार का ट्रांजैक्शन कॉइन की कीमत को तेजी से ऊपर या नीचे धकेल सकता है।

इसका कोर लॉजिक बहुत सरल है: मार्केट ट्रेडिंग वॉल्यूम जितना बड़ा, "ऑर्डर बुक" (सभी के बाय-सेल प्राइस लिस्ट) पर विभिन्न प्राइस लेवल पर ऑर्डर जितने घने, लिक्विडिटी उतनी ही अधिक, और ट्रेडिंग उतनी ही सुचारू।

दो, लिक्विडिटी का अच्छा-बुरा होना, सीधे आपके वॉलेट को प्रभावित करता है

1. उच्च लिक्विडिटी: ट्रेडिंग का "कम्फर्ट जोन"

  • ट्रेडिंग कॉस्ट कम: बिड-आस्क स्प्रेड (बायर का हाईएस्ट प्राइस और सेलर का लोएस्ट प्राइस का अंतर) बहुत छोटा होता है, "स्लिपेज" (वास्तविक ट्रेड प्राइस और अपेक्षित प्राइस का अंतर) लगभग नगण्य होता है, बिना वजह लाभ की हानि नहीं होती;

  • ट्रांजैक्शन स्पीड तेज: चाहे खरीदें या बेचें, तुरंत मैचिंग ऑर्डर मिल जाता है, इंतजार नहीं करना पड़ता;

  • कीमत अधिक विश्वसनीय: बड़े ट्रांजैक्शन से भी कॉइन की कीमत में बड़ा उतार-चढ़ाव नहीं होता, बड़े फंड वाले प्लेयर्स और फ्रीक्वेंट ट्रेडर्स के लिए उपयुक्त।

2. निम्न लिक्विडिटी: छिपा हुआ नुकसान का जोखिम

  • ट्रांजैक्शन मुश्किल: आप एक प्राइस पर बाय-सेल ऑर्डर लगाते हैं, लेकिन कोई मैचिंग ऑर्डर न होने से आधे दिन तक ट्रेड नहीं होता;

  • लाभ चुपके से कम: उदाहरण के लिए, आप 10 रुपये में 1000 टोकन बेचना चाहते हैं, लेकिन मार्केट में इतने बायर्स नहीं, इसलिए 9.8 रुपये, 9.7 रुपये आदि कम प्राइस पर ट्रेड करना पड़ता है, अंत में एवरेज प्राइस सिर्फ 9.8 रुपये, सीधे 2% का नुकसान;

  • आसानी से "कट लेना": थोड़े फंड से कॉइन प्राइस को मैनिपुलेट किया जा सकता है, सामान्य "पंप एंड डंप", ज्यादातर निम्न लिक्विडिटी वाले कॉइन्स पर होता है।

तीन, कैसे चुनें? 3 वास्तविक जजमेंट तकनीकें

1. एक्सचेंज चुनें: "वास्तविक ट्रेडिंग वॉल्यूम" देखें

लिक्विडिटी "लोगों से आती है"—यूजर बेस बड़ा, पब्लिक ट्रेडिंग वॉल्यूम हाई वाले टॉप एक्सचेंज पर बाय-सेल ऑर्डर अधिक एक्टिव होते हैं, उसी कॉइन की लिक्विडिटी आमतौर पर बेहतर होती है।

उदाहरण के लिए, टॉप एक्सचेंज पर बिटकॉइन, इथेरियम आदि मेनस्ट्रीम कॉइन्स के ऑर्डर बुक पर विभिन्न प्राइस लेवल पर ऑर्डर घने भरे होते हैं, भले ही बड़ा ट्रांजैक्शन हो, सुचारू रूप से ट्रेड होता है। लेकिन ध्यान दें: एक्सचेंज सिर्फ प्लेटफॉर्म प्रदान करता है, लिक्विडिटी का कोर अभी भी कॉइन खुद पर निर्भर है कि कोई खरीदे या बेचे।

2. कॉइन चुनें: "कोल्ड जोम्बी कॉइन्स" से बचें

किसी भी एक्सचेंज पर, कॉइन की लिक्विडिटी जज करने के लिए 3 पॉइंट्स देखें:

  • ऑर्डर बुक पर ऑर्डर घने हैं या नहीं: बाय-सेल प्राइस के बीच स्प्रेड देखें, स्प्रेड जितना छोटा, लिक्विडिटी उतनी अच्छी;

  • ट्रेडिंग वॉल्यूम स्थिर है या नहीं: लगातार 7-30 दिनों का वॉल्यूम में बड़ा उतार-चढ़ाव न हो, अचानक "अनॉर्मल वॉल्यूम" न हो;

  • मार्केट अटेंशन पर्याप्त है या नहीं: क्या रेगुलर न्यूज रिपोर्ट्स हैं, कम्युनिटी डिस्कशन हाई है या नहीं, उन "एयर कॉइन्स" से बचें जिनका कोई जिक्र न हो, कोई हाइप न हो।

3. पिट अवॉइड रिमाइंडर: "फेक डेटा" से धोखा न खाएं

कुछ छोटे एक्सचेंज या कॉइन्स "फेक ट्रेडिंग वॉल्यूम" ब्रश करते हैं, डेटा अच्छा लगता है लेकिन वास्तविक ट्रेडिंग नहीं। सच्चाई जज करने के लिए देखें: क्या अथॉरिटेटिव थर्ड-पार्टी प्लेटफॉर्म (जैसे CoinGecko) का वॉल्यूम वेरिफिकेशन है, ऑर्डर बुक पर सिर्फ थोड़े ऑर्डर हैं या नहीं, ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड्स ब्रोकन हैं या नहीं।